लगातार हो रही पेट्रोल-डीजल की मूल्यवृद्धि से आम लोगों में त्राही त्राही मची, बजट बिगड़ा, मंहगाई बढ़ी

उज्जैन/ घोंसला (नागू वर्मा) जब से केन्द्र में भाजपा की सरकार बनी है तब से एक के बाद एक लिए जा रहे गलत फैसलों की सजा आम लोगों को भोगना पड़ रही है यहां हम पहले के किसी गलत फैसले का जिक्र न करते हुए सिर्फ वर्तमान की बात करते हैं तो देखा जा सकता है कि सरकार की हठधर्मिता के कारण आम आदमी का बजट ही गड़ बड़ा गया है विगत 3 माह से पूरा देश कोरोना संक्रमण की चपेट में आ जाने से लाकडाउन के चलते आर्थिक स्थिति पूरी तरह खराब हो चुकी है इस दौरान लोगों को अनेक प्रकार की भयावह स्थितियों से रूबरू होने को विवश होना पड़ा है। आज भी उसकी कल्पना मात्र से वे सिहर उठते हैं। देश भर में लाकडाउन के कारण लोग बेरोजगार ही नहीं हुए अपितु जो कुछ उसके पास रहा होगा वह इस संक्रमण काल में लुटा देने को विवश थे सरकारें जो भी कहें वह उनके हितों की ही बात करते हुए झूठ को भी आंकड़ों की बाजीगरी से सच साबित करेंगी। परंतु इस सच्चाई को अनदेखा नहीं किया जा सकता है कि मजदूर वर्ग के साथ साथ यदि किसी अन्य वर्ग ने इसका सबसे अधिक दर्द झेला है तो वह है मध्यम वर्ग, संक्रमण काल में इन्हें सरकारों ने भी अपने हाल पर छोड़ दिया था वहीं वर्तमान में किसी हद तक संक्रमण पर जब नियंत्रण पाया जा चुका है तो भी सरकार इन्हें राहत देने की बजाय लगातार डीजल, पेट्रोल के दामों में वृद्धि कर आमजन की जेबों पर डाका डाल हताश करने में लगी हुई है। विगत 16 दिनों में पेट्रोल पर 8.30 पैसे तथा डीजल पर 9.22 पैसे का इजाफा कर देने के बावजूद यह सिलसिला थमा नहीं है वह भी तब जब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर क्रूड ऑयल के दामों में निरंतर गिरावट दर्ज की जा रही है। ऐसा शायद देश में पहली बार देखने को मिल रहा है कि डीजल व पेट्रोल के दाम लगभग समान ही हों पहले इनमें लगभग10रु.का अंतर देखने को मिला है लेकिन अब हमारे द्वारा चुनी गई सरकारों ने यह करिश्मा भी कर दिखाया है ।  पेट्रोल, डीजल के भावों में बढ़ोतरी का सीधा असर आमजन पर ही पड़ना है मूल्य वृद्धि के माध्यम से सरकार तो अपनी आर्थिक स्थिति ठीक कर लेगी लेकिन लुटा, पिटा आमजन अब और बदहाल होगा।


मूल्यवृद्धि से सीधे सीधे मंहगाई बढ़ रही है कारण कि जीवनोपयोगी वस्तुओं का ट्रांसपोर्टिंग मंहगा हो जाएगा तो गेहूं, चावल, शकर, दाल, मसाले, गेस आदि सभी आवश्यक वस्तुओं के दाम बढ़ने से कैसे रोका जा सकेगा। दाम बढ़ते हैं तो फिर मंहगाई का दंश कोरोना से परेशान प्रदेशवासी कैसे झेल पाएंगे क्या इस पर विचार नहीं किया जाना चाहिए। यदि सरकार ने इसके लिए कोई रूपरेखा तैयार की है तो उसे जनता के सामने रखना चाहिए। कोविड-19 की आड़ में कभी केन्द्र सरकार टेक्स थोप देती है तो कभी राज्य सरकार आमजन की भूमिका तो मात्र यह रह गई है कि वे इन राजनेताओं को वोट देकर जितवा दें और फिर वे ही कुर्सी मिलने के बाद प्रताड़ित करें हम असहाय बन इनकी प्रताड़ना झेलें। 


"पेट्रोलियम कंपनियों की मनमानी पर रोक क्यों नहीं''-


अब तो सरकार की इस बात से भी लोगों का भरोसा उठता जा रहा है कि पेट्रोलियम पदार्थों में मूल्य वृद्धि का फैसला सरकार का नहीं उन कंपनियों का निर्णय है। सरकार अब ऐसी दलीलें देकर बच नहीं सकती मान लिया जाए कि कंपनियों को सरकार ने मूल्य घटाने या बढ़ाने का अधिकार दे दिया है तो फिर क्रूड ऑयल के अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दाम बढ़ने के बाद भी यदि किसी राज्य में चुनाव हैं तो कंपनियों को दाम नहीं बढ़ाना पड़ते हैं ऐसा बिना सरकार के इशारे के संभव है क्या। वहीं कच्चे तेल के मूल्यों में भारी कमी होने के बावजूद ये कंपनियां मनमाना मुनाफा जनता से कैसे वसूल कर सकती हैं। सरकार इन पर नियमों के अनुसार अधिक मुनाफा कमाने का प्रकरण दर्ज कर इन्हें रोक सकती है यदि ऐसा होता तो लोगों को सरकार की सच्चाई पर शक ही नहीं करना पड़ता। लेकिन सरकार टेक्स लगाकर तो कंपनियां जबरन दरें बढ़ाकर लोगों की आर्थिक परेशानियों में वृद्धि कर रही है। इसे दोनों की मिलीभगत नहीं तो और क्या माना जाए। डीजल पेट्रोल में हो रही मूल्य वृद्धि से प्रदेश के लोगों में हाहाकार मचा हुआ है। जब केन्द्र में काबीज भाजपा विरोधी दल की भूमिका में थी तो सरकार की जरा सी मूल्य वृद्धि पर देशभर में हायतौबा मचाती थी परन्तु अब वह सत्ता में है तो मूल्यवृद्धि को उचित बता दोमुंहा बर्ताव कर रही है। वहीं कांग्रेस भी इस दौर में विपक्ष की भूमिका निभाने में सक्षम दिखाई नहीं दे रही है। उसे मूल्यवृद्धि पर आक्रामक रुख अख्तियार कर जनता की आवाज बनना था लेकिन यह नहीं हो सका। दो पाटों के बीच में जनता आखिर कब तक पिसती रहेगी, आमजन को फौरी तौर पर राहत प्रदान करने के लिए सरकार को पेट्रोल, डीजल पर अपने टेक्स में कमी करना एक मात्र रास्ता दिखाई दे रहा है। यदि ऐसा नहीं होता है तो हालात और बिगड़ेंगे।